Jain literature में उन निग्रंथ महर्षियों को मुनि कहा गया है जिनकी आत्मा संयम में स्थिर है, सांसारिक वासनाओं से जो रहित हैं और जीवों की जो रक्षा करते हैं। जैन मुनि 28 मूल गणों का पालन करते हैं। वे अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन पाँच व्रतों तथा ईर्या (गमन में सावधानी), भाषा, एषणा (भोजन शुद्धि), आदाननिक्षेप (धार्मिक उपकरण उठाने रखने में सावधानी) और प्रतिष्ठापना (मल मूत्र के त्याग में सावधानी), इन पाँच समितियों का पालन करते हैं। वे पाँच इंद्रियों का निग्रह करते हैं, तथा सामायिक, चतुविंशतिस्तव, वंदन, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान (त्याग) और कायोत्सर्ग (देह में ममत्व का त्याग) इन छह आवश्यकों को पालते हैं। वे केशलोंच करते हैं, नग्न रहते हैं, स्नान और दातौन नहीं करते, पृथ्वी पर सोते हैं, त्रिशुद्ध आहार ग्रहण करते हैं और दिन में केवल एक बार भोजन करते हैं। ये सब मिलाकर 28 मूल गुण होते हैं।
Muni (Jainism)
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(Text) CC BY-SA